journalmucojor@gmail.com +91 91738 61986

“जिस लाहौर नइ देख्या, ओ जम्याइ नइ”- में मानवीय संवेदना

Keywords : संवेदना, इंसानियत, विभाजन, मज़हब, त्रासदी

Abstract : असगर वजाहत रचित “जिस लाहौर नइ देख्या, ओ ज्म्याए नइ” नाटक हिंदी के उन विशिष्ट नाटकों में सम्मिलित हैं, जो लगातार मंचित व प्रशंसित हो रहा हैं | हिंदुस्तान का विभाजन और सरहदों के आर पार का कत्लेआम, दोनों भारत और पाकिस्तान की ऐसी दुखती रगे हैं जो संवेदनशील मन में आज भी टकराती रहती हैं | यह ऐसा नाटक हैं जिसमें भारत - पाकिस्तान के विभाजन की त्रासदी का चित्रण हैं | जिसमें दो अलग मजहब के परिवार की कहानी हैं | यह कहानी सत्य घटना पर आधारित हैं | जिसमें हिंदु औरत के जीवन के बारे में और सामने मुस्लिम परिवार के बीच के रिश्ते को वजाहत जी ने बहुत ही अच्छी तरह से नाटक के जरिए प्रस्तुत किया हैं | इस नाटक में दो अलग मजहब की बात की गई हैं जो इंसानियत के तौर पर खरी उतरी हैं | जिसमे एक ओर धार्मिक विचार वाले लोग तो दूसरी ओर अपने मजहब के खिलाफ कट्टरवादी सोच रखने वाले लोगों की बात की गई हैं | हिंदु औरत जो बूढी हैं, जब उसकी मृत्यु हो जाती हैं तब उसको अग्निदाह देने के लिए एक इस्लामी मौलवी हिंदु धर्म के अनुसार उस बूढी औरत का दाह संस्कार करता हैं | उसमें एक मजहब के प्रति संवेदनशील बताया गया हैं | जो खुद मुसलमान होते हुए भी एक हिन्दुस्तानी औरत का अग्निसंस्कार करता हैं और वह भी हिंदु धर्म के अनुसार जो इस बात को स्पष्ट करता हैं की – आज भी इंसानियत जिन्दा हैं | जिससे यह संदेश मिलता हैं की सिर्फ मजहब के प्रति न सोचकर इंसानियत के प्रति भी सोच रखनी चाहिए |

Download