Keywords : भूमंडलीकरण, बाजारवाद, उपभोकतवाद, पूंजीवाद, मशीनिकरण, महत्वाकांषा, लालसा, शोषण, प्रकृति, संस्कृति, समाज, परिवार, गांव, शहर, अकेलापन, कुंठा, मानवीय मूल्य, युवा, मध्यवर्ग, गरीब
Abstract : भूमंडलीकरण ने समग्र विश्व को एक सूत्र में पिरो दियां है। आज किसी भी देश और वहाँ की संस्कृति को जानना आसान हो गया है। यही बजह है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकार हमारी संस्कृति दूषित हों रही है। आज पाश्चात्य संस्कृति हमारे प्राचीन परम्पराओं का नाश कर रही है। समाज में मानवीय मूल्य खत्म हों रहे हैं। उपभोक्तावादी जीवन के चंगुल में समाज फसता जा रहा है। मनुष्य आत्मकेंद्रित और कुंठित बंता जा रहा है। बड़े-छोटों के बीच का मान-सम्मान जाता रहा है। लोग पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं। फलस्वरूप समाज में भोग, व्यभिचार, मूल्यहीनता, स्वार्थ, अकेलापन, संकीर्णता, कुंठा जैसे गुण व्याप्त हो गए हैं। स्वयं प्रकाश अपनी कहानी बलि, गौरी का गुस्सा और संधान में इनहि समस्याओं को रेखांकित करते हैं और समाज को इन ताकतों से लड़ने की सलाह देते हैं।
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